मनोज जरांगे पाटिल ने मराठा आरक्षण के मुद्दे पर सरकार से सहमति हासिल करने के बाद अपना अनशन तोड़ने का निर्णय लिया है। इस विषय पर हुई लंबी चर्चा के बाद, जरांगे पाटिल ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ समझौता किया है और इसके परिणामस्वरूप अब वह मुंबई के आजाद मैदान में नहीं जाएंगे।
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इस समझौते के अनुसार, कई मुद्दों पर सहमति हुई है जो मराठा समुदाय के लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। पहले मुद्दे में, जरांगे पाटिल ने मांग की है कि 54 लाख मराठा समुदाय के लोगों को जाति प्रमाण पत्र वितरित किए जाएं और उनकी वंशावली का मिलान करके प्रमाणपत्र दिए जाएं। सरकार ने इस मांग पर सहमति दी है और 37 लाख लोगों को पहले ही प्रमाण पत्र दिए जा चुके हैं।
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दूसरे मुद्दे में, शिंदे सरकार ने शिंदे समिति को रद्द नहीं किया जाएगा और उसे मराठों के कुनबी अभिलेखों की खोज जारी रखने का निर्णय लिया है। समिति का कार्यकाल चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जाएगा और वह इस काम में तीन महीने और लगाएगी।
तीसरे मुद्दे में, पंजीकृत व्यक्तियों के निकटतम परिवार सदस्यों को प्रमाणपत्र दिया जाएगा और उन्हें सरकारी निर्णय/अध्यादेश द्वारा लाभ मिलेगा। इसके साथ ही, शपथ पत्र प्रस्तुत करने वाले पंजीकृत व्यक्तियों को भी कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाएगा। सरकार ने इस मुद्दे में भी सहमति जताई है। चौथे मुद्दे में, मराठा आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएंगे, जिससे आंदोलन के प्रति समर्थकों को विश्वास मिलेगा।
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पाँचवें मुद्दे में, सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की गई है और मांग की गई है कि तब तक मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं मिलता है, तब तक मराठा समुदाय के बच्चों को 100 फीसदी मुफ्त शिक्षा और सरकारी भर्तियों में आरक्षण मिलना चाहिए। सरकार ने इस मांग को पहले हिस्से को नहीं माना है, लेकिन यह भी देखा जाएगा कि कैसे आगे बढ़ाया जाता है।
इस समझौते के माध्यम से, मराठा समुदाय के लोगों को अपनी मांगों की सुन्दरता मिली है और उन्हें सरकारी समर्थन का भरोसा है। यह समझौता एक महत्वपूर्ण पहलू है जो महाराष्ट्र में सामाजिक समरसता और न्याय की दिशा में कदम बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।