मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक मंच पर उभरकर आया है, खासकर जब कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार द्वारा मुसलमानों को ओबीसी कोटे में शामिल करने के फैसले को रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह निर्णय संविधान की उस धारा के आधार पर दिया जिसमें धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं है। हाई कोर्ट के इस फैसले ने भाजपा को एक और मुद्दा दे दिया है, जिसे वह आगामी चुनावों में भुनाने का प्रयास करेगी।
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कलकत्ता हाई कोर्ट का यह फैसला मार्च 2010 और मई 2012 के बीच पारित किए गए आदेशों की श्रृंखला को रद्द करता है, जिसमें 77 समुदायों, जिनमें 75 मुस्लिम समुदाय शामिल थे, को ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण दिया गया था। जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथा की बेंच ने यह पाया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य सरकार का यह निर्णय केवल धर्म के आधार पर था, जो संविधान के अनुसार अनुचित है।
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इस फैसले के बाद से ही बीजेपी ने इस मुद्दे को लेकर विपक्ष पर हमला बोल दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई भाजपा नेताओं ने विपक्ष पर हिंदुओं से आरक्षण और अन्य लाभ छीनकर मुसलमानों को देने का आरोप लगाया है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी ममता बनर्जी की सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है और टीएमसी सरकार ने मुस्लिम जातियों को आरक्षण देकर तुष्टिकरण की राजनीति की है।
वहीं, एसपी नेता एस टी हसन ने कहा कि जब उनकी सरकार आएगी तो वे संविधान में संशोधन करके मुस्लिमों को आरक्षण देंगे। राजस्थान में भी इस मुद्दे पर चर्चा तेज हो गई है। राजस्थान के सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत ने पुष्टि की है कि प्रदेश में ओबीसी मुस्लिम जातियों के आरक्षण का रिव्यू किया जाएगा।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह चुनावों में धर्म के आधार पर राजनीति कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि बीजेपी बौखला गई है और हिंदू-मुस्लिम राजनीति कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा चुनाव के आखिरी दौर में इस मुद्दे को उठाकर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।
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कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला उस समय आया जब कुछ दिन पहले ही आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने मुस्लिम आरक्षण की खुली पैरवी की थी, जिसके बाद बीजेपी ने फौरन काउंटर किया था। पीएम मोदी से लेकर बीजेपी के सभी बड़े नेताओं ने विपक्ष पर हिंदुओं से आरक्षण और अन्य लाभ छीनकर मुसलमानों को देने का आरोप लगाया था।
इस फैसले के बाद भाजपा को मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा कांग्रेस के खिलाफ सबसे प्रभावी एजेंडा बनाने में मदद मिल रही है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की सरकारों पर धर्म के आधार पर आरक्षण देने की साजिश का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट लिखा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं मिलेगा, लेकिन कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस बात को नहीं मान रहे हैं।
इस मुद्दे का आगामी चुनावों पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह तो चार जून को ही पता चलेगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा भाजपा के चुनाव प्रचार का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है, जिसे वह पूरी आक्रामकता के साथ भुनाने की कोशिश कर रही है। वहीं, विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे आने वाले दिनों में इस पर और भी घमासान देखने को मिल सकता है।
मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में है, जब 22 मई 2024 को कोलकाता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा मुस्लिम समुदायों को ओबीसी कोटे में शामिल करने के फैसले को रद्द कर दिया। यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16(4) का हवाला देते हुए दिया गया, जिसमें सरकारी रोजगार और प्रतिनिधित्व में आरक्षण का प्रावधान है। लेकिन हाई कोर्ट ने पाया कि यह निर्णय पूरी तरह से धर्म के आधार पर लिया गया था, जो संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।
2010 में पश्चिम बंगाल सरकार ने 5 मार्च से 24 सितंबर के बीच कई अधिसूचनाएं जारी कीं, जिनमें 42 वर्गों को ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। इनमें से 41 मुस्लिम समुदाय से थे। उसी साल 24 सितंबर को कुछ वर्गों को ओबीसी-ए (अति पिछड़ा) और कुछ को ओबीसी-बी में उप-वर्गीकृत करने का आदेश जारी किया गया था। इस आरक्षण को पहली बार 2011 में चुनौती दी गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि यह पूरी तरह से धर्म पर आधारित था और ओबीसी सूची में इन्हें शामिल करना अवैज्ञानिक सर्वेक्षण के आधार पर किया गया था।
मई 2012 में, ममता बनर्जी की सरकार ने अन्य 35 वर्गों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया, जिनमें से 34 मुस्लिम समुदाय से थे। इस फैसले को भी हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। मार्च 2013 में, पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (रिक्तियों और पदों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 अधिसूचित किया गया था, जिसमें सभी 77 (42+35) वर्गों को नए ओबीसी को अधिनियम की अनुसूची में शामिल किया गया था। इस अधिनियम को भी चुनौती देते हुए दो याचिकाएं हाई कोर्ट में दायर हुई थीं।
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कोलकाता हाई कोर्ट के फैसले ने भाजपा को एक नया मुद्दा दे दिया है, जिसे वह आगामी चुनावों में भुनाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई भाजपा नेताओं ने विपक्ष पर हिंदुओं से आरक्षण और अन्य लाभ छीनकर मुसलमानों को देने का आरोप लगाया है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी ममता बनर्जी की सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है और टीएमसी सरकार ने मुस्लिम जातियों को आरक्षण देकर तुष्टिकरण की राजनीति की है।
वहीं, एसपी नेता एस टी हसन ने कहा कि जब उनकी सरकार आएगी तो वे संविधान में संशोधन करके मुस्लिमों को आरक्षण देंगे। राजस्थान में भी इस मुद्दे पर चर्चा तेज हो गई है। राजस्थान के सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत ने पुष्टि की है कि प्रदेश में ओबीसी मुस्लिम जातियों के आरक्षण का रिव्यू किया जाएगा।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह चुनावों में धर्म के आधार पर राजनीति कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि बीजेपी बौखला गई है और हिंदू-मुस्लिम राजनीति कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा चुनाव के आखिरी दौर में इस मुद्दे को उठाकर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की सरकारों पर धर्म के आधार पर आरक्षण देने की साजिश का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट लिखा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं मिलेगा, लेकिन कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस बात को नहीं मान रहे हैं।
इस फैसले के बाद भाजपा को मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा कांग्रेस के खिलाफ सबसे प्रभावी एजेंडा बनाने में मदद मिल रही है। पीएम मोदी से लेकर भाजपा के सभी बड़े नेताओं ने इस मुद्दे पर विपक्ष को घेरने का प्रयास किया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह मुद्दा आगामी चुनावों में भाजपा को कितना लाभ पहुंचाता है।
कुल मिलाकर, कोलकाता हाई कोर्ट का फैसला और उसके बाद की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में इस मुद्दे का जनता पर क्या प्रभाव पड़ता है।