रूस का मून मिशन और भारत के चंद्रयान-3 के बीच मून मिशनों की तुलना करते समय एक दिलचस्प दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। रूस का मून मिशन, जिसे “लूना-25” कहा जाता है, का उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना था और इतिहास रचना था। यह रूस के लिए मून पर इस प्रकार का पहला मिशन था जिसका मुख्य उद्देश्य सॉफ्ट लैंडिंग करके चंद्रमा की तलाश थी।
लेकिन दुर्भाग्यवश लूना-25 का मिशन 19 अगस्त को विफल हो गया और यह चंद्रमा की सतह पर क्रैश हो गया। इसके पीछे एक तकनीकी खराबी का पता चला, जिसके कारण मून यान की प्रणोदन प्रणाली ने निष्क्रिय हो जाने के बाद यान की गति से ज्यादा समय तक अंतरिक्ष में विस्फोट हो गया। इस तकनीकी खराबी का पता चलने के बाद, रूस के लिए यह एक बड़ा झटका था, क्योंकि उनका सपना चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंड करने का टूट गया। इसके बाद चार दिन बाद, भारत के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग की। इससे भारत चंद्रमा पर पहले देश बन गया जिसने इस इलाके पर अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक उतारा। यह भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मोमेंट था।
इस घटना से यह साबित होता है कि अंतरिक्ष मिशन्स में सफलता पाने के लिए तकनीकी कुशलता और सुरक्षितता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, और किसी भी गलती के परिणामस्वरूप अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विफल हो सकते हैं। यह एक और उदाहरण है कि अंतरिक्ष अनुसंधान में सफलता पाने के लिए बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और सफलता की गारंटी नहीं होती।विश्वभर के अंतरिक्ष एजेंसियों के लिए यह एक सीखने और सुधारने का मौका हो सकता है, ताकि भविष्य के मून मिशन्स में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उन्हें और भी सुरक्षित और सफल बनाया जा सके।
इस घटना से हम यह सिख सकते हैं कि अंतरिक्ष अनुसंधान में सफलता पाने के लिए तकनीकी निपुणता और सुरक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, और किसी भी गलती के परिणामस्वरूप अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विफल हो सकते हैं। इससे हमें यह भी सिखने को मिलता है कि अंतरिक्ष में काम करने वाले देशों के लिए सहयोग और साझेदारी कितनी महत्वपूर्ण होती है, जिससे वे अंतरिक्ष अनुसंधान में अधिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
अंतरिक्ष में कदम रखने वाले भारत के पहले व्यक्ति, स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा का सौभाग्य था कि वे सोवियत अंतरिक्ष यान पर सवार होकर अंतरिक्ष में गए थे, और इसके साथ ही वे भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री भी बने थे। इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि अंतरिक्ष में व्यक्तिगत उपलब्धियों को साझा करके हम सभी मानवता के लिए अंतरिक्ष के साथ अधिक जुड़ सकते हैं और इस क्षेत्र में अधिक प्रगति कर सकते हैं।
इसके रूप में, रूस के लूना-25 के मिशन के विफल होने और भारत के चंद्रयान-3 के मिशन के सफल होने के बाद, हम सभी को यह याद दिलाने का मौका मिलता है कि अंतरिक्ष अनुसंधान में सफलता पाने के लिए न केवल तकनीकी निपुणता बल्कि साझेदारी और सुरक्षा भी महत्वपूर्ण हैं।