श्रीलंका में जातीय मुद्दे का समाधान खोजने के लिए वहां के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने अब भारत के एक समुदाय से मदद की मांग की है। हाल ही में उन्होंने जातीय मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी चर्चा की थी। अब आप भी यही सोच रहे होंगे कि श्रीलंका में आखिर ऐसा कौनसा जातीय मुद्दा है जिसके लिए उन्होंने भारत की मदद लेनी पड़ रही है और वो भी किसी भारतीय समुदाय की। तो आइए आपको बताते हैं इस पूरे मामले के बारे में।
कई अधिकारों से वंचित हैं श्रीलंकाई तमिल समुदाय
जानकारी के मुताबिक, श्रीलंका में ज्यादातर आबादी तमिल है। लेकिन उन्हें वहां अल्पसंख्यकों का दर्जा मिला हुआ है। ऐसे में वह कई सारे अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। इसलिए अब श्रीलंका में संविधान में संशोधन किए जाने की मांग उठ रही है, जिससे कि तमिल समुदाय को उनके अधिकार मिल सके। साथ ही सत्ता में भी उनकी भागीदारी हो सके। बता दें श्रीलंका की सत्ता में अब तक तमिल समुदाय की सहभागिता नहीं है। वहां तमिल और सिंघलियों के बीच हमेशा मतभेद बना रहता है।
प्रांतीय परिषदों दी जानी चाहिए शक्तियां
बता दें बुधवार को भी रानिल विक्रमसिंघे ने एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इस बैठक में श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि, ‘अल्पसंख्यक तमिलों के जातीय मेल-मिलाप के जटिल मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों को चर्चा में भाग लेना चाहिए, क्योंकि संविधान के 13वें संशोधन (13ए) का पूर्ण क्रियान्वयन पूरे देश के लिए अहम है।’ साथ ही पूरी बैठक में रानिल विक्रमसिंघे ने इस बात पर जोर दिया कि, ’13 (ए) पर बातचीत केवल तमिल पार्टियों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। नौ प्रांतों में से सात प्रांत सिंहली बहुल क्षेत्र हैं। उन्होंने कहा कि प्रांतीय परिषदों को कृषि और पर्यटन जैसी शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए।’ बता दें श्रीलंका में फिलहाल ये सभी शक्तियां सिर्फ केंद्र सरकार के पास है।