लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों ने देश के राजनीतिक परिदृश्य में कई नए अध्याय लिखे हैं। चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए नेताओं में से कई ने जीत हासिल की, जबकि कुछ को निराशा का सामना करना पड़ा। यह देखना दिलचस्प है कि किसने अपने दल-बदल के फैसले से लाभ उठाया और किसके लिए यह कदम निष्फल साबित हुआ।
सिंधिया की बड़ी जीत
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मध्य प्रदेश के गुना निर्वाचन क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी जीत का परचम लहराया। उन्होंने पांच लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की। 2019 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार बीजेपी का हिस्सा बनने के बाद उन्होंने भारी मतों से जीत हासिल की। सिंधिया का यह निर्वाचन क्षेत्र उनके परिवार का गढ़ रहा है, जहां उनकी दादी विजया राजे सिंधिया ने लगातार चार बार जीत हासिल की थी।
नवीन जिंदल की जीत
उद्योगपति और दो बार के सांसद नवीन जिंदल ने इस साल मार्च में बीजेपी में शामिल होकर कांग्रेस से दो दशक पुराना नाता तोड़ा था। उन्होंने हरियाणा के कुरुक्षेत्र से 29,000 से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। यह जीत नवीन जिंदल के लिए एक बड़ा मुनाफा साबित हुई, जिससे उनके राजनीतिक करियर में नई ऊर्जा का संचार हुआ।
जितिन प्रसाद की सफलता
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उत्तर प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता स्वर्गीय जितेन्द्र प्रसाद के पुत्र जितिन प्रसाद ने भी बीजेपी में शामिल होकर सफलता हासिल की। उन्होंने पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से 1.64 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की। जितिन प्रसाद के लिए यह चुनावी जीत उनके राजनीतिक करियर को नई ऊंचाईयों पर ले गई।
असफल दलबदलू: अशोक तंवर
हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर, जो इस वर्ष की शुरुआत में बीजेपी में शामिल हुए थे, ने सिरसा से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें कांग्रेस की कुमारी शैलजा से 2.68 लाख से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। तंवर का राजनीतिक सफर दल-बदल के बावजूद असफल रहा और उनके लिए यह चुनावी कदम बेकार साबित हुआ।
सीता सोरेन और परनीत कौर की हार
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झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की विधायक सीता सोरेन, जो झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी हैं, ने भी बीजेपी में शामिल होकर दुमका से चुनाव लड़ा, लेकिन 22,000 से अधिक मतों के अंतर से हार गईं। पूर्व केंद्रीय मंत्री परनीत कौर भी इस साल भाजपा में शामिल हुईं, लेकिन पटियाला से चुनाव हार गईं। कौर चार बार इस सीट से जीत चुकी थीं, लेकिन इस बार तीसरे स्थान पर रहीं और लगभग 16,000 वोटों के अंतर से हार गईं।
रवनीत बिट्टू और सुशील रिंकू की असफलता
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कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर 2019 में जीतने वाले रवनीत बिट्टू, जो मार्च में बीजेपी में शामिल हुए थे, अपनी लुधियाना सीट नहीं बचा पाए। वह कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा से 20,000 से अधिक मतों से हार गए। इसी तरह, निवर्तमान लोकसभा में आम आदमी पार्टी के एकमात्र सांसद रहे सुशील रिंकू भी चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे, लेकिन जालंधर सीट नहीं बचा पाए। उन्हें पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस के चरनजीत सिंह चन्नी ने हराया।
दल-बदल राजनीति में नया नहीं है और यह चुनावी रणनीति का हिस्सा भी बन चुका है। 2024 के लोकसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि दल-बदल का फैसला हमेशा सफल नहीं होता। जहां कुछ नेताओं ने बीजेपी में शामिल होकर चुनावी जीत हासिल की, वहीं कईयों को हार का सामना करना पड़ा।
सिंधिया, नवीन जिंदल और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं के लिए बीजेपी में शामिल होना लाभकारी साबित हुआ, जबकि अशोक तंवर, सीता सोरेन, परनीत कौर, रवनीत बिट्टू और सुशील रिंकू के लिए यह कदम निष्फल रहा।
यह चुनावी परिणाम यह दर्शाता है कि केवल दल-बदल ही चुनावी जीत की गारंटी नहीं है। जनता की भावनाएं, उम्मीदवार की छवि और उनकी सेवा का इतिहास भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक दलों को भी यह समझना होगा कि दल-बदल के जरिए ही चुनावी जीत हासिल नहीं की जा सकती। उन्हें जनता के विश्वास और समर्थन को बनाए रखने के लिए निरंतर मेहनत करनी होगी।