जापान, एक अग्रणी और समृद्ध देश, अब एक नई समस्या का सामना कर रहा है – ट्रक ड्राइवरों की कमी। सरकार के अनुसार, इस पेशे में वैकेंसी की कमी तो है नहीं, लेकिन उच्चतम स्तर पर ट्रक ड्राइवर बनने के लिए आवेदन करने वालों में कमी आ गई है।
क्या यह संस्कृति और ट्रक ड्राइविंग में एक अजीब संबंध है? हाँ, हो सकता है। जापान में जो व्यक्ति ट्रक चलाता है, उसे “अल्ट्रा कंवीनियंस” भी कहा जाता है, जो कि आधुनिक सुविधाओं के साथ एक सशक्त जीवन जीने का एक नाम है। लेकिन इस समय, ट्रक ड्राइवरों की कमी के कारण जापान का यह आधुनिक सिस्टम कुछ बदल रहा है।
जापान की लॉजिस्टिक सिस्टम अब बेदम हो रही है क्योंकि डोर टू डोर डिलिवरी में विलम्ब हो रहा है और ट्रक ड्राइवरों की कमी की वजह से सामान पहुंचाने में दिक्कत हो रही है। इससे जापानी सुपरमार्केट्स और बड़े बड़े व्यापारिक स्थलों में सामान की उपलब्धता में भी कमी हो रही है।
ड्राइवरों की कमी के कारण सुपरमार्केट्स में सेल्फ सेविंग की गई खाली दुकानें, जिससे जनता को सामान का सही समय पर नहीं मिल रहा है। एयरपोर्ट, गोल्फ क्लब, और बड़े सप्लायर्स के सामान पहुंचाने में भी दिक्कत हो रही है।
जापान सरकार का कहना है कि इस समस्या के कारण उन्हें लगभग पांच लाख 82 हजार करोड़ का नुकसान होगा। यहां ट्रक ड्राइवरों की सैलरी भी भारतीय करेंसी में 51 हजार से शुरू होती है और अधिकतम सैलरी 1.5 लाख तक पहुंचती है।
बूढ़ी होती आबादी की वजह से भी यह समस्या उत्पन्न हो रही है, क्योंकि बूढ़े लोग ट्रक ड्राइविंग में कम रुचि ले रहे हैं और जो हैं वे भी अपने काम से धन्य नहीं हैं। सरकार के अनुसार, यह समस्या बढ़ती आबादी के साथ आने वाली जीवनशैली की एक प्रतिक्रिया है, जिससे जापान को नए समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
ट्रक ड्राइवरों की कमी की वजह से जापान को लगभग 5 लाख 82 हजार करोड़ का नुकसान होगा.
बता दें कि जापान में 90 % सामनों की आवाजाही सड़क के रास्ते की जाती है. जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 70% का है. जापान सरकार के मुताबिक जिस तरह से बूढ़े लोगों की संख्या वृद्धि रही है उसकी वजह से ट्रक ड्राइवरों की भारी कमी हो रही है. यही नहीं जो मौजूदा ट्रक ड्राइवर हैं वो भी अपने काम से जी चुरा रहे हैं आप कह सकते हैं उनकी रुचि में भरी मात्रा में कमी आई है. हालात ये हैं कि ट्रक ड्राइवरों की 130 सीट के लिए मात्र 100 आवेदन आ रहे हैं. उसमें भी जिन ट्रक ड्राइवर का चयन हो रहा है वो नौकरी करने से कतरा रहे हैं.
इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है, लेकिन क्या यह अपने आप में एक नई युग की शुरुआत है? क्या जापान को यह सिखना पड़ेगा कि वह भी बदलते समय के साथ कदम मिलाकर चलना होगा?
यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जो नहीं सिर्फ जापान, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों को भी ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि विश्व भर में तकनीकी और सामाजिक परिवर्तनों के साथ ऐसी ही समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं जो हमें नए सोचने और समाधान ढूंढने के लिए मजबूर कर रही हैं।