2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा दी है। भाजपा बहुमत से दूर रही, लेकिन एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने 292 सीटें जीतकर सरकार बनाने की संभावना को मजबूत किया। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा, खासकर टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी) और जेडी(यू) (जनता दल यूनाइटेड) पर। आइए जानें कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के अलावा अन्य सहयोगी क्यों एनडीए छोड़ सकते हैं और उनके साथ बने रहने की क्या वजह हो सकती है।
तेलुगू देशम पार्टी (TDP) और चंद्रबाबू नायडू
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चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी साल 1996 में पहली बार एनडीए में शामिल हुई थी। उन्होंने 2018 में एनडीए से अलग होकर भारी नुकसान उठाया। तेलंगाना विधानसभा चुनाव में टीडीपी सिर्फ 2 सीटें जीत सकी और 2019 में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ 23 सीटों पर सिमटी। इस साल फरवरी में टीडीपी फिर से एनडीए में शामिल हुई और इसका फायदा पार्टी को हुआ। आंध्र प्रदेश विधानसभा की 175 सीटों में से 135 सीटें जीतने के साथ ही टीडीपी ने लोकसभा की 16 सीटें भी हासिल कीं।
एनडीए छोड़ने की संभावनाएं
इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A Alliance) के नेताओं द्वारा चंद्रबाबू नायडू को लगातार कॉल किए जाने की खबरें आ रही हैं। नायडू प्रमुख मंत्रालयों की मांग कर सकते हैं और अगर उन्हें बेहतर डील मिलती है तो वे एनडीए छोड़ सकते हैं।
एनडीए में बने रहने की वजहें
1. कांग्रेस की कमजोरी: आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की लोकप्रियता अभी तक वापस नहीं आई है, जिससे टीडीपी को एनडीए में बने रहना ज्यादा लाभकारी लगता है।
2. बीजेपी का साथ: पीएम मोदी और भाजपा के साथ नायडू का अभियान सफल रहा और उनकी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की। अगर नायडू एनडीए से अलग होते हैं तो भविष्य में उन्हें राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
जनता दल (यूनाइटेड) और नीतीश कुमार
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नीतीश कुमार को एक समय विपक्ष के संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के साथ जाने का फैसला किया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए के दिग्गज नेता रहे नीतीश ने उनकी कैबिनेट में केंद्रीय रेल मंत्री के रूप में काम किया था। 2014 के आम चुनाव से पहले नीतीश ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किए जाने का विरोध किया और 2013 में एनडीए छोड़ दिया।
एनडीए छोड़ने की संभावनाएं
नीतीश कुमार की पलटी मारने की प्रवृत्ति के कारण उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं। वे कभी भी इंडिया गठबंधन से बेहतर डील मिलने की स्थिति में एनडीए छोड़ सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीतकर नीतीश एक बार फिर किंगमेकर की भूमिका में आ गए हैं।
एनडीए में बने रहने की वजहें
1. स्थिरता की कमी: नीतीश कुमार के रिकॉर्ड को देखते हुए उनके समर्थन से केंद्र में स्थिरता आने की संभावना कम है, लेकिन एनडीए में बने रहने से उनकी पार्टी की राजनीतिक स्थिति मजबूत रह सकती है।
2. जनता का विश्वास: बार-बार गठबंधन बदलने के बावजूद नीतीश ने जनता का विश्वास बनाए रखा है। एनडीए में बने रहने से उनकी लोकप्रियता को नुकसान नहीं होगा।
चिराग पासवान और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)
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रामविलास पासवान भारतीय राजनीति में सबसे चतुर राजनीतिक संचालकों में से एक के रूप में जाने जाते थे। वे चुनाव से पहले गठबंधन बदलते थे और जीत हासिल करते थे। अटल बिहारी वाजपेयी के युग में एनडीए में रहने वाले रामविलास पासवान, मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में भी जगह बनाई थी। वे अपनी पार्टी के प्रभाव और लाभ को अधिकतम करने के लिए अपनी वफादारी बदलने के लिए जाने जाते थे।
एनडीए छोड़ने की संभावनाएं
चिराग पासवान को अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अगर उन्हें इंडिया गठबंधन से बेहतर ऑफर मिलता है तो वे एनडीए छोड़ सकते हैं।
एनडीए में बने रहने की वजहें
1. पार्टी की स्थिरता: एनडीए में बने रहने से लोक जनशक्ति पार्टी की राजनीतिक स्थिति मजबूत रह सकती है।
2. साझेदारी का लाभ: भाजपा के साथ रहने से पार्टी को केंद्र और राज्य स्तर पर लाभ मिलता रहा है, जिससे एनडीए में बने रहना फायदेमंद हो सकता है।
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के एनडीए में बने रहने या छोड़ने के निर्णय कई कारकों पर निर्भर करते हैं। यह निर्णय उनके राजनीतिक भविष्य, पार्टी की स्थिति और जनता की भावनाओं पर आधारित होगा। एनडीए के सहयोगियों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वे भाजपा के साथ अपने संबंधों को कैसे प्रबंधित करते हैं और उन्हें इंडिया गठबंधन से क्या ऑफर मिलता है। आगामी समय में यह देखना रोचक होगा कि भारतीय राजनीति में ये बड़े नेता और उनकी पार्टियां किस दिशा में कदम बढ़ाते हैं।