मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बार-बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलाने की वजहों के बारे में बात करते हुए यह कहा जा रहा है कि इसमें कई कारण हैं जो भाजपा को नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में साकारात्मक परिणाम हासिल करने की दिशा में मदद कर रहे हैं।
1. राजनीतिक गणना और सत्ता की लालसा: नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में रहकर कई बार से यह साबित कर चुके हैं कि वे राजनीतिक गणना को समझते हैं और वे सत्ता के लिए किस प्रकार से खिलवार कर सकते हैं। भाजपा ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार को अपने साथ मिलाने का फैसला किया है।
2. राजनीतिक समीकरण: भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच राजनीतिक समीकरण एक महत्वपूर्ण कारण है। नीतीश कुमार ने बिहार में पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए कई कदम उठाए हैं, और इससे वे अपनी जनप्रियता को बनाए रखने में सफल रहे हैं। इससे भाजपा को भी इन वर्गों के वोटों का लाभ हो रहा है।
3. राजनीतिक एजेंडा और विचारधारा: नीतीश कुमार और भाजपा दोनों ही हिंदुत्व और परिवारवाद के खिलाफ हैं और इसके आधार पर वे साथ मिलकर राजनीतिक गणना कर रहे हैं। इस साझेदारी से वे अपने चुनावी एजेंडा को मजबूत कर रहे हैं।
4. पिछड़ा वर्ग का समर्थन: बिहार में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और EBC (अत्यंत पिछड़ी जातियां) का मिलाजुला आबाद है, और नीतीश कुमार इस आबादी के बीच बहुमत में आने का समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। भाजपा ने इस समर्थन को प्राप्त करके नीतीश कुमार के साथ मिलने का फैसला किया है।
5. जरूरत या मजबूरी: भाजपा ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में चुनावी समर्थन को मजबूत करने की जरूरत महसूस की है, खासकर 2024 के लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से। इससे भाजपा को राज्य में मजबूत प्रस्तुती मिल सकती है और वे वहां से अधिक सीटें जीत सकती हैं।
इस प्रकार, भाजपा और नीतीश कुमार के बीच राजनीतिक संबंध कई कारणों से हो रहे हैं और इसका प्रभाव बिहार की राजनीतिक स्थिति पर हो रहा है।