लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर देश में राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर है। छठे चरण का मतदान समाप्त हो चुका है और अब सभी पार्टियों की नजरें सातवें और अंतिम चरण पर हैं, जो 1 जून को होने वाला है। इसी बीच सपा ने अपने घोषणापत्र में मुस्लिमों को आरक्षण देने की वकालत की है, जिस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
सपा का घोषणापत्र और मुस्लिम आरक्षण की वकालत
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समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपने घोषणापत्र में मुस्लिम समुदाय को आरक्षण देने का वादा किया है। यह वादा सपा की ओर से मुस्लिम समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से किया गया है। सपा का दावा है कि मुस्लिम समुदाय के लोग अभी भी शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं और आरक्षण से उन्हें मुख्यधारा में लाने में मदद मिलेगी।
भाजपा की प्रतिक्रिया
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सपा के इस वादे पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तीखा हमला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को उठाते हुए विपक्षी इंडी गठबंधन पर निशाना साधा। मोदी ने कहा कि धर्म के नाम पर आरक्षण देना संविधान के खिलाफ है और इससे देश की सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंच सकता है।
मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि इंडी गठबंधन ने कई शैक्षणिक संस्थानों में मुसलमानों को धर्म के नाम पर आरक्षण दिया है, जिससे दलित, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और आदिवासी समाज के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस मुद्दे पर अपना बयान दिया है। उन्होंने सपा के मुस्लिम आरक्षण वादे को असंवैधानिक बताया और कहा कि धर्म के आधार पर आरक्षण देना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। योगी ने कहा कि संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए हैं और धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव अस्वीकार्य है।
आरक्षण का संवैधानिक पहलू
भारत का संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है और किसी भी प्रकार के धार्मिक भेदभाव को अस्वीकार करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करते हैं। अनुच्छेद 15(1) स्पष्ट रूप से कहता है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
धर्म के आधार पर आरक्षण का मुद्दा भारतीय राजनीति में नया नहीं है। विभिन्न सरकारों ने समय-समय पर इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन संवैधानिक प्रावधानों के कारण इसे लागू करने में कठिनाइयाँ आई हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि धर्म के आधार पर आरक्षण संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
राजनीतिक दृष्टिकोण
धर्म के आधार पर आरक्षण का मुद्दा राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह न केवल मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और आर्थिक विकास का सवाल है, बल्कि यह देश की सामाजिक समरसता और एकता पर भी प्रभाव डालता है। विपक्षी दलों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय को आरक्षण देने से उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, जबकि भाजपा का तर्क है कि धर्म के आधार पर आरक्षण देना संविधान के खिलाफ है और इससे समाज में भेदभाव और विभाजन बढ़ेगा।
चुनावी जनसभाओं का दौर
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सातवें चरण के मतदान के लिए चुनावी जनसभाओं का दौर जारी है। विभिन्न दलों के नेता एक-दूसरे पर तीखे हमले कर रहे हैं और जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयानों से यह स्पष्ट है कि भाजपा इस मुद्दे को लेकर विपक्ष पर हमलावर है और इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है।
सपा के मुस्लिम आरक्षण वादे और भाजपा की तीखी प्रतिक्रिया ने लोकसभा चुनाव 2024 में नया मोड़ ला दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर जनता की प्रतिक्रिया क्या होती है और इसका चुनावी परिणामों पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह मुद्दा न केवल चुनावी दृष्टिकोण से बल्कि देश की सामाजिक समरसता और संविधान की मूल भावना के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है।
सभी दलों को चाहिए कि वे संविधान के प्रावधानों का सम्मान करें और किसी भी प्रकार के भेदभाव से बचें। चुनावी राजनीति में ध्रुवीकरण और भेदभाव को बढ़ावा देने के बजाय समग्र विकास और सामाजिक न्याय पर ध्यान केंद्रित करना समय की आवश्यकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि 1 जून को होने वाले मतदान और 4 जून को आने वाले नतीजे इस मुद्दे पर क्या प्रकाश डालते हैं।