18वीं लोकसभा के पहले सत्र में सांसदों द्वारा शपथ ग्रहण के दौरान नारेबाजी करने की घटनाओं ने एक नए विवाद को जन्म दिया। असदुद्दीन ओवैसी द्वारा ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगाए जाने के बाद, इस मुद्दे पर काफी बवाल मचा। इसके बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने शपथ ग्रहण के नियमों में बदलाव कर इसे और सख्त बना दिया है। अब सांसद शपथ के दौरान नारे नहीं लगा सकेंगे और उन्हें संविधान के प्रारूप के अनुसार ही शपथ लेना होगा।
शपथ ग्रहण का विवाद
18वीं लोकसभा के पहले सत्र के दौरान एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने संसद सदस्यता की शपथ लेते समय ‘जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना और सबसे आखिर में ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगाया था। इसके बाद अन्य सांसदों ने भी विभिन्न नारे लगाए, जिससे सदन में विवाद बढ़ गया। राहुल गांधी ने ‘जय हिंद’ और ‘जय संविधान’ का नारा लगाया, जबकि बरेली से बीजेपी सांसद छत्रपाल गंगवार ने ‘हिंदू राष्ट्र की जय’ का नारा लगाया। सपा सांसद अवधेश राय ने ‘जय अयोध्या’ और ‘जय अवधेश’ के नारे लगाए, और हेमा मालिनी ने शपथ की शुरुआत ‘राधे-राधे’ से की।
लोकसभा स्पीकर का फैसला
इस विवाद के बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सांसदों के शपथ ग्रहण को लेकर नियमों में बदलाव करने का निर्णय लिया। नए नियमों के अनुसार, अब भविष्य में शपथ लेने वाले निर्वाचित सांसदों को संविधान के अंतर्गत शपथ के प्रारूप के अनुसार ही शपथ लेना होगा। वे शपथ के दौरान न तो नारे लगा पाएंगे और न ही अपने शपथ में कोई और शब्द जोड़ पाएंगे।
नए नियमों का प्रारूप
लोकसभा अध्यक्ष के निर्देश के मुताबिक, लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों (17वें संस्करण) के नियम 389 में बदलाव कर दिया गया है। नियम 389 के निर्देश-1 में खंड- 2 के बाद अब एक नया खंड-3 जोड़ा गया है। इसके अनुसार, “एक सदस्य भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची में इस उद्देश्य के लिए निर्धारित प्रपत्र के अनुसार ही शपथ लेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा। शपथ के साथ उपसर्ग या प्रत्यय के रूप में कोई भी टिप्पणी या किसी भी अन्य शब्द या अभिव्यक्ति का उपयोग नहीं करेगा।”
विवाद के कारण
सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान नारों को लेकर कई लोगों ने आपत्ति जताई थी। आरोप लगाया गया था कि सांसद शपथ ग्रहण के जरिए अपना-अपना सियासी संदेश भेज रहे हैं। इसके अलावा, यह भी आरोप लगाया गया कि यह सदन की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है। शपथ ग्रहण के दौरान नारों के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों को व्यक्त करना संसदीय परंपराओं के खिलाफ माना गया।
नए नियमों के प्रभाव
नए नियमों के लागू होने से शपथ ग्रहण के दौरान नारे लगाने की परंपरा पर विराम लग जाएगा। इससे सदन की गरिमा बनाए रखने में मदद मिलेगी और सांसदों को संविधान के अनुरूप ही शपथ लेने पर मजबूर होना पड़ेगा। इससे न केवल सदन की कार्यवाही सुचारु रूप से चल सकेगी, बल्कि सांसदों के बीच राजनीतिक विचारों के टकराव से भी बचा जा सकेगा।
संसद में शपथ ग्रहण के दौरान नारों का लगाना एक विवादित मुद्दा बन चुका था। इस पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सख्त कदम उठाते हुए नए नियम लागू किए हैं, जिससे शपथ ग्रहण के दौरान नारों पर रोक लगाई जा सकेगी। यह कदम सदन की गरिमा और शांति बनाए रखने में मददगार साबित होगा। अब सांसदों को संविधान के प्रारूप के अनुसार ही शपथ लेना होगा, जो न केवल संसदीय परंपराओं का पालन करेगा बल्कि राजनीतिक विवादों को भी कम करेगा।