निलंबन का तरीका और निलंबित सांसदों पर लगी पाबंदियों का विस्तार से बताने के लिए आपका आभास है। संसद में हंगामा करने वाले सांसदों को निलंबित करने का प्रक्रियात्मक पहलू और इसके परिणामस्वरूप होने वाले प्रतिबंधों के बारे में जानकर हैरानी हो सकती है।
![](https://sabsetejkhabar.com/wp-content/uploads/2023/12/image_2023_12_20T03_56_44_610Z-1024x768.png)
सबसे पहले तो, संसद में हंगामा करने वाले सांसदों को निलंबित करने का फैसला लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों या स्पीकरों के द्वारा किया जाता है। इसमें उन्हें गंभीर अनुशासन उल्लंघन के आरोप में शामिल किया जा सकता है।
निलंबन के प्रक्रियात्मक दृष्टिकोण से, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण है। वे अध्यक्षों के रूप में संसदीय नियमों के अनुसार फैसला कर सकते हैं कि किस सदस्य को निलंबित किया जाएगा और किसे नहीं। इसमें सदस्यों के अव्यवस्थापूर्ण व्यवहार या सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के आरोपों का मूल्यांकन हो सकता है।
![](https://sabsetejkhabar.com/wp-content/uploads/2023/12/image_2023_12_19T09_05_31_903Z-1.png)
जब सांसद को निलंबित किया जाता है, तो उस पर कई पाबंदियां लगाई जाती हैं। इनमें से कुछ मुख्य प्रतिबंधित क्षेत्रों में शामिल हैं, जैसे कि:
1. निलंबित सांसदों को चालू सत्र के समय के दौरान उनके द्वारा दिया गया कोई भी आवेदन /नोटिस स्वीकार नहीं किया जाएगा।
2.वे अपने निलंबन की अवधि के समय पर होने वाले समितियों के चुनावों में वोटिंग नहीं कर सकते।
3.यदि शेष सत्र के लिए सदन की सेवा से उन्हें सदन से निलंबित कर दिया जाता है, तो वे निलंबन की अवधि के लिए दैनिक भत्ते के भी हकदार नहीं होते हैं।
4.निलंबित सांसद चैंबर, लॉबी और गैलरी में प्रवेश नहीं कर सकते।
5.उन्हें संसदीय समितियों की बैठकों से भी निलंबित कर दिया गया है।
6.उनके नाम पर बिजनस की लिस्ट में कोई आइटम भी नहीं रखा गया है।
इस प्रकार, निलंबित सांसदों को उनके व्यवहार के परिणामस्वरूप कई प्रतिबंधित क्षेत्रों में सीमित किया जाता है। यह उन्हें संसद की कार्रवाही से बाहर रखने का एक प्रयास है और उन्हें उनके अव्यवस्थापूर्ण व्यवहार के लिए जिम्मेदार बनाए रखने का एक तरीका है।
कई बार संसदीय सदस्यों का निलंबन वापस लिया जा सकता है, जब वे माफी मांगते हैं या संसद में चर्चा होने वाले प्रस्ताव पर सदस्यों का विचार लिया जाता है। इसमें संसदीय नियमों के अनुसार आवश्यक प्रक्रियाएं होती हैं, जिसमें सदन की बहुमति की आवश्यकता होती है।
आखिरकार, निलंबित सांसदों के मामले को न्यायिक प्रक्रिया में लाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि यह संसद की अनुशासन से संबंधित होता है और यह न्यायालय के कार्यक्षेत्र में नहीं आता है।
सांसदों के निलंबन के मामले में जानकारी मिली है, और यह बहुत रूप से संसदीय प्रक्रिया और नैतिकता के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में हंगामा करने और उसके परिणामों को समझना हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है।
सांसदों के हंगामा करने की वजह
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया की विरोध कर रहे सदस्यों हाल में हुए विधानसभा चुनाव परिणामों से ”निराश” होने का आरोप लगाया। दरअसल, INDIA ब्लॉक के सांसद संसद में सुरक्षा उल्लंघन मामले पर गृह मंत्री अमित शाह से संसद में बयान देने की मांग कर रहे थे। वे अपने हाथों में तख्तियां लिए हुए थे और लगातार नारेबाजी कर रहे थे। सांसदों ने पीएम मोदी की मॉर्फ्ड फोटो वाली तख्तियां भी दिखा रहे थे। सांसदों के इस आचरण पर अध्यक्ष ने कहा कि, वे अपनी हार से हताश हैं इसलिए ऐसे कदम उठा रहे हैं। अगर यही व्यवहार जारी रहा तो ये लोग अगली बार भी सदन में वापस नहीं आएंगे।”
खरगे ने लगाया सत्तापक्ष पर आरोप
![](https://sabsetejkhabar.com/wp-content/uploads/2023/12/image_2023_12_19T08_25_44_675Z-1-1024x614.png)
सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार नहीं चाहती कि लोग विपक्ष की बात सुनें और इसलिए उन्होंने ”निलंबित करो, बाहर करो और बुलडोजर” की नीति अपनाई है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “141 विपक्षी सांसदों का निलंबन हमारे आरोप को मजबूत करता है कि एक निरंकुश भाजपा इस देश में लोकतंत्र को ध्वस्त करना चाहती है।”