फलस्तीनी शरणार्थियों के संदर्भ में इस मुद्दे के पीछे कई कारण हैं। पहली बात, फलस्तीनी लोगों का विस्थापन और उनकी आर्थिक स्थिति कई दशकों से अस्थिर रही है। दूसरी बात, इजरायल और अन्य आसपासी देशों के बीच राजनीतिक और सुरक्षा संबंधों के कारण उन्हें अपने यहां बसाना चुनौतीपूर्ण होता है। इसमें विभिन्न पहलुओं का समावेश है, जिसे समझना महत्वपूर्ण है।
इजरायल के साथ हुई युद्ध और भू-राजनीतिक विवादों के चलते, फलस्तीनी शरणार्थियों को अपने गावों और शहरों से निकलकर अन्य क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके परिणामस्वरूप, वे अलग-अलग अरब देशों और क्षेत्रों में कैंपों और स्थायी बसे हैं, जहां उनकी जीवनशैली मुश्किल है।
दूसरी ओर, अनेक अरब देश भी फलस्तीनी शरणार्थियों को स्वीकृति देने में हिचकिचा रहते हैं क्योंकि इससे उनके राजनीतिक और सुरक्षा परिस्थितियों पर प्रभाव पड़ सकता है। यह भी सत्य है कि हमास जैसी संगठनों के साथ जुड़े रहने का खौफ है, जिन्होंने इस्तेमाल होते हुए अपने हथियारों का उपयोग करते हैं और आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं।
इस परिस्थिति के साथ-साथ, फलस्तीनी शरणार्थियों को स्वीकृति देने से उन अरब देशों को भी चिंता है कि यह उनके स्थानीय जनसंख्या और सुरक्षा को कैसे प्रभावित करेगा। इसमें अर्थात् उनकी नजर में यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण समस्या है जिस पर स्पष्टता से निर्णय लेना मुश्किल होता है।