भारत में दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों, अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन, पर लटक रही गिरफ़्तारी की तलवार की चर्चा हो रही है। इसके पीछे चुनावी राजनीति का आभास है, जिससे विपक्षी पार्टियां इन मुख्यमंत्रियों को प्रचार से रोकना चाहती हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गैरकानूनी शराब घोटाले में पूछताछ के लिए ईडी ने समन भेजा है। उन्होंने ईडी के समन को गैरकानूनी बताया और इसके पीछे राजनीतिक षड्यंत्र की आशंका जताई। केजरीवाल ने लिखित जवाब में ईडी की कार्रवाई को गैरकानूनी और विपक्षी पार्टियों द्वारा चुनाव से पहले उन्हें प्रभारी बनाने की कोशिश के रूप में बताया।
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी ईडी के समन से बच रहे हैं। ईडी ने सोरेन को बार-बार समन भेजा है, लेकिन वह पेश नहीं हो रहे हैं। सोरेन ने ईडी के लिए लिखित जवाब में कहा है कि ईडी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सरकार को अस्थिर करना चाहती है और मीडिया में उनका मीडिया ट्रायल कर रही है।
इन घटनाओं के पीछे राजनीतिक रंग हैं और चुनाव से पहले इस प्रकार की गिरफ़्तारी की कोशिशें उच्च प्रोफ़ाइल नेताओं को बदनाम करने का एक तरीका है। यह चुनावी प्रचार में बड़ी गतिविधि को प्रेरित कर सकता है और नेताओं की बचावी चुनौतियों को बढ़ा सकता है। इससे पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं हुई हैं जब नेताओं को चुनाव से पहले गिरफ़्तार करने की कोशिश की गई है।
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चुनाव से पहले इस प्रकार की गिरफ़्तारी के चर्चे विपक्षी पार्टियों में हलचल मचा रहे हैं और यह राजनीतिक सीने में बवाल उत्पन्न कर सकता है। इसके साथ ही, यह एक संविदानिक मुद्दा भी है क्योंकि नेताओं को गिरफ़्तार करना बड़े स्तर पर लोकतंत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है।
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चुनाव से पहले यह गतिविधियां राजनीतिक दलों के बीच जघन्य संघर्ष को बढ़ा सकती हैं और विभाजन बढ़ा सकता है। नेताओं को गिरफ़्तार करने का प्रयास राजनीतिक खेल में एक नई रूचि ला सकता है और जनता के माध्यम से इस पर प्रतिक्रिया आ सकती है।
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इस संदर्भ में, नेताओं को गिरफ़्तार करने की तलवार से पहले उन्हें न्यायिक प्रक्रिया का समर्थन करना चाहिए ताकि लोगों को विश्वास हो कि इसमें राजनीतिक खेलने की कोई कोशिश नहीं है। यह भी उन्हें एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने में मदद कर सकता है और लोगों को यकीन होगा कि न्यायिक प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष है।
इस समय, जनता को सच्चाई के प्रति आत्मविश्वास और न्यायिक प्रक्रिया के प्रति विश्वास की आवश्यकता है ताकि देश का राजनीतिक दल परिस्थितियों का सामना कर सके और चुनावों में विश्वास बना रहे।