महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मराठा समुदाय को कोटा का मसला सामाजिक टेंशन पैदा कर रहा है। मराठा समुदाय ने 19 में से 12 सीएम दिए हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण वोटबैंक बनाता है। दूसरी ओर, ओबीसी में 346 जातियां हैं जिन्हें मंडल कमीशन से आरक्षण मिला है। इन दोनों वोटबैंकों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। विशेष सत्र में बिल पास हो सकता है, जिससे आरक्षण के मुद्दे पर तारी रहेगी।

आरक्षण, इस शब्द में ही एक राजनीतिक तूफान छुपा है। इस पर किसी ने कुछ कहा, बयान के गलत मायने न निकले, राजनीति में इस पर बयानबाजी बहुत संभलकर और वोटबैंक पर होने वाले असर को ध्यान में रखकर की जाती है। महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों पर, मराठा राजनीतिक संकट बरकरार है। इस बार लोकसभा चुनाव से पहले भूख हड़ताल कर रहे मनोज जरांगे ने आवाज बुलंद की है, जिसके साथ जुटी भीड़ ने शिंदे सरकार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए मजबूर किया है।
महाराष्ट्र सरकार को मराठा समुदाय को आरक्षण देने पर चर्चा करने की जरूरत है। अनुमान है कि कल ही कथित तौर पर 10-12% मराठा कोटा वाला बिल पास हो सकता है, लेकिन इस मुद्दे का राजनीतिक और सामाजिक असर होगा। इस संकट में भाजपा को ध्यान में रखना होगा।

ओबीसी नेता भुजबल की आपत्ति: ओबीसी नेता छगन भुजबल ने मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाण पत्र देने के फैसले का विरोध किया है। उन्हें यहाँ विरोध है कि मराठा समुदाय को अलग कोटा देने के पक्ष में हैं, लेकिन इसकी पड़ताल और सत्यापन किए बिना उन्हें कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के विरोध में हैं।

आंदोलन के लीडर जरांगे की चेतावनी: मनोज जरांगे ने अपने आंदोलन के माध्यम से मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग की है और चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में रुकावट पैदा की जाएगी।

सरकार चला रहे CM शिंदे की उलझन: महाराष्ट्र सरकार को जातिगत समीकरण को साधने की चुनौती है, जिससे कोई खेमा नाराज न हो।
बीजेपी क्या चाहती है?: भाजपा ने ओबीसी और उच्च जातियों का नया सामाजिक समीकरण बुना है, जिससे वह अपने विरोधी पार्टियों को कमजोर कर सके।
महाराष्ट्र सरकार को मराठा समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर सर्वे करके उनके लिए आरक्षण सुनिश्चित करने वाला कानून बनाने में मदद मिलेगी।