नालंदा जिले के गिरियक प्रखंड के सकुची सराय गांव का नाम आज बड़ी खबर का मुख्य विषय बना है। यहां के बच्चे, जो कि आजादी के 76 बर्षों के बाद भी अपने शिक्षा के लिए नाव का सहारा लेते हैं।
स्कूल जाने के लिए नाव ही सहारा

सकुची सराय गांव में एक मध्य विद्यालय है, लेकिन गांव में किसी भी प्रकार की सार्वजनिक परिवहन सुविधा नहीं है। गांव के लोग खेती का काम करने वाले हैं और स्कूल जाने के लिए नाव का ही सहारा लेते हैं।
छात्रों का संघर्ष:

बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग तक, सकुची सराय गांव के लोगों के लिए यह नॉर्मल हो चुका है वे सुबह उठकर अपने नावों में बैठकर स्कूल जाते हैं। उन्हें यह संघर्ष रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुका है। हमें अपने स्कूल जाने के लिए नाव का इस्तेमाल करना पड़ता है।
इस गांव में किसी भी प्रकार का सुविधा नहीं होने के कारण
इस गांव में किसी भी प्रकार का सुविधा नहीं होने के कारण, लोगों को इलाज कराने के लिए भी नाव का ही सहारा लेना पड़ता है । चिकित्सकों तक पहुंचने के लिए भी नाव ही एकमात्र विकल्प होता है।
खतरे का सामना:
इस प्रकार के जीवनशैली के चलते, गांव के बच्चों को स्कूल जाने में बहुत सी जोखिमें उठानी पड़ती हैं। नाव के सहारे यात्रा करते समय वे जल में गिरने, डूबने, या दुर्घटनाओं का खतरा उठाते हैं।
समापन:
आखिर में सवाल यही उठता है कि अगर किसी भी प्रकार का दुर्घटना होता है, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? क्या सरकार इस गांव के लोगों की सुविधा को सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएगी? यह बड़ा मुद्दा है, और हमें उम्मीद है कि इसका समाधान जल्दी से होगा।
नालंदा के सकुची सराय गांव के बच्चों की इस संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी ने हमें सोचने पर मजबूर किया है कि शिक्षा और सुरक्षा के लिए अधिक सुविधाएं और उपाय उपलब्ध कराने का काम बड़े महत्वपूर्ण है।
यहां के बच्चों को सुरक्षित और आसान तरीके से स्कूल पहुंचाने के लिए सरकार और समाज के सभी अंगों को मिलकर काम करना होगा।