ईवीएम मशीन एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो मतदान के दौरान उपयोग होती है। यह मशीन मतदाताओं को मत देने के लिए उपयोग किया जाता है और यह वोटों की गिनती भी करती है। ईवीएम मशीन एक बैटरी से चलती है और इसमें कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट दो हिस्से होते हैं। कंट्रोल यूनिट रिटर्निंग ऑफिसर के पास होती है, जबकि बैलेटिंग यूनिट मतदान कंपार्टमेंट में रखी जाती है।
चुनाव प्रक्रिया के दौरान, मतदाताओं को ईवीएम मशीन के द्वारा मतदान करने का विकल्प दिया जाता है। मतदाता कंट्रोल यूनिट पर ‘बैलट’ बटन दबाता है, जिसके बाद मतदाता बैलेटिंग यूनिट पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के आगे लगा ‘नीला बटन’ दबाता है और अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देता है। वोटिंग के बाद, वोट कंट्रोल यूनिट में दर्ज किया जाता है और गिनती के लिए उपयोग किया जाता है।

भारत में ईवीएम मशीन को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) द्वारा तैयार किया जाता है। इन कंपनियों ने ईवीएम मशीन के डिजाइन और विकसित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चुनाव आयोग के अनुसार, ईवीएम मशीन ने पेपर बैलट से वोटिंग की तुलना में ज्यादा सटीकता प्रदान की है। इसका कारण यह है कि मशीन से वोटिंग कराए जाने के बाद इससे गलत या अस्पष्ट वोट डालने की संभावना खत्म हो जाती है।

लेकिन हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम पर बहस हुई है। यहां, याचिकाकर्ता ने ईवीएम पर सवाल उठाए कि क्या यह मशीन संवैधानिक है और क्या इससे वोटिंग की गुणवत्ता को लेकर संदेह है। इस बहस के दौरान, जस्टिस संजीव खन्ना ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं और हर किसी को पता है कि जब बैलेट पेपर्स से वोटिंग होती थी तो किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था।

वास्तव में, ईवीएम मशीन के बारे में इस तरह की बहसें आवश्यक हैं। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि चुनाव प्रक्रिया में पूर्णता और निष्पक्षता है। अतः, ईवीएम मशीन के संवैधानिकता और गुणवत्ता को लेकर बहस को समझना और समाधान करना महत्वपूर्ण है।