बिहार में हाल ही में एक नया घोटाला सामने आया है, जिसमें जमुई जिले के क्षेत्र में फर्जी शिक्षकों के माध्यम से करीब एक करोड़ 71 लाख 25 हजार रुपये से अधिक सरकारी राशि पर डाका डाला गया है। इस घोटाले के पर्दाफाश के बाद जाँच का आदान-प्रदान हो रहा है और यदि इसमें कोई अनियमितता सामने आती है, तो इस राशि में वृद्धि हो सकती है।
बिहार में सरकारी योजनाओं में घोटालों की खबरें सामान्यत: रहती हैं, और इस घटना ने फिर से प्रदेश की राजनीति में घोटालों की बहस को उजागर किया है। बिहार की राजनीति में पहले भी कई घोटाले सामने आए हैं, जैसे कि चारा घोटाला, जिसमें राजद सुप्रीमो लालू यादव सजायाफ्ता हैं। इसके अलावा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासनकाल में भी कई घोटाले हुए हैं।
इस नए घोटाले में, रिपोर्ट के अनुसार, 2015 के बाद नियोजित अप्रशिक्षित शिक्षकों के वेतन भुगतान बंद कर दिया गया था और इसके बाद फर्जी शिक्षकों को दिखाकर सरकारी खजाने पर डाका डाला गया है। यह घोटाला निकलने के बाद जाँच में राशि में वृद्धि होने की आशंका है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस घोटाले के पीछे एक आदेश है, जिसमें 11 जुलाई 2022 की तिथि के बाद निर्गत पत्र में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने निर्देश दिया था कि शिक्षकों के कार्यरत अवधि का वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाए। इस आदेश के बाद ही फर्जीवाड़े की खोज शुरू हुई और घोटाले का पर्दाफाश हुआ।
इस सारे मामले को समझते हुए यह स्पष्ट है कि बिहार में घोटालों के मामले बढ़ रहे हैं और इससे प्रदेश की राजनीति और सरकारी प्रणाली को बड़ा झटका पहुंचा है। जनता और समाज को इस प्रकार के घोटालों के खिलाफ सतर्क रहना महत्वपूर्ण है ताकि सच्चाई की जीत हो सके और ऐसे प्रकार के अनैतिक क्रियाओं को रोका जा सके।